विटामिन के प्रकार फायदे कार्य और उपयोगिता-Vitamin in Hindi

विटामिन की खोज अन्य तत्वों की खोज के काफी समय बाद ही हुई है। इनकी खोज विभिन्न रोगो के कारण खोजते हुए ही संभव हुई है। इनकी खोज लम्बी समुंद्री यात्राएँ करने वाले नाविकों को होने वाले स्कर्वी तथा बेरी बेरी नामक घातक रोगो के कारण खोजते समय प्रारम्भ हुई बाद में यह भी ज्ञात कर लिया गया की विभिन्न विटामिन भिन्न-भिन्न भोज्य पदार्थो में विद्ममान है। जैसे नीबू, और संतरे आदि में विटामिन C पर्याप्त मात्रा में विद्ममान है। अब भोज्य पदार्थो में से विटामिन को अलग भी किया जा सकता है। अब शरीर के नियमित स्वास्थ के लिए विभिन्न विटामिनो का समुचित ज्ञान प्राप्त कर लिया गया है। हम आप को इस लेख में विटामिन के प्रकार विटामिन की कमी विटामिन के स्रोत कार्य और उपयोगिता के बारे में विस्तार से बतायंगे।

Table of Contents

शरीर में विटामिन की उपयोगिता (Benefits Of Vitamins In The Body)

उपर्युक्त परिचयात्मक विवरण द्वारा स्पष्ट होता है, कि शरीर के लिए विटामिनो की अत्यधिक आवश्यकता एवं उपयोगिता है। विटामिनो की उपयोगिता को निम्मन विवरण द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।

  • विटामिन की सही मात्रा में ग्रहण करने से शरीर में विभिन्न रोगों से मुकाबला करने तथा उनसे बचे रहने की क्षमता प्राप्त होती है। इसके विपरीत विटामिन की कमी से व्यक्ति विभिन्न प्रकार के रोगों का शिकार हो जाता है।
  • विटामिन ग्रहण करने से व्यक्ति चुस्त एवं स्वस्थ बना रहता है। इसके विपरीत, विटामिन की कमी या अभाव के परिणामस्वरूप शरीर में शक्ति की कमी हो जाती है तथा रक्त में विभिन्न प्रकार के कीटाणुओ से लड़ने की शक्ति घट जाती है।
  • सही मात्रा में विटामिन ग्रहण करने से व्यक्ति को भूख ठीक प्रकार से लगती है। इसके विपरीत यदि विटामिन की कमी या अभाव हो जाए तो भूख कम लगती है, सुस्ती बनी रहती है। तथा व्यक्ति को नींद अधिक आने लगती है।
  • विटामिन की कमी से शरीर अत्यधिक कमजोर एवं दुर्बल हो जाता है।

विटामिन के प्रकार (Types Of Vitamins)

मानव शरीर के लिए उपयोगी विभिन्न विटामिनो का वर्गीकरण उनकी घुलनशीलता के आधार पर किया जाता है। कुछ विटामिन ऐसे है जो जल में घुल जाते है, लेकिन अन्य विलायकों में नहीं घुलते इससे विभिन्न कुछ विटामिन ऐसे है जल में नहीं घुलते, लेकिन वसा में सरलता से घुल जाते है। इस अंतर के कारण समस्त विटामिनों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है।

  1. जल में घुलित विटामिन (Water Soluble Vitamins)
  2. वसा मे घुलित विटामिन (Fat Soluble Vitamins)

विटामिन के वर्गीकरण निम्मन रूप में भी दर्शाया गया है।

  1. जल में घुलित विटामिन (Water Soluble Vitamins)

1. विटामिन B काम्प्लेक्स (Vitamin B Complex)

  • विटामिन B1 (थायमिन, एन्यूरिन)
  • B2 (राइबोफ्लेविन)
  • B3 (निकोटिनिक एसिड और निकोटिनामाइड और नियासिनमाइड)
  • पाइरिडाक्सिन (विटामिन B6)
  • पेंटथीनिक एसिड
  • फोलिक एसिड
  • बायोटिन
  • कोलिन
  • पी-एमीनो बैन्जोइक एसिड
  • आइनोसिटाल
  • विटामिन B12

2. विटामिन ‘C’ अथवा एस्कार्बिक एसिड

3. विटामिन ‘P’ अथवा बायोफ्लेबोनाइड्स

2. वसा मे घुलित विटामिन (Fat Soluble Vitamins)

  • विटामिन A और कैरीटीन
  • विटामिन D
  • विटामिन D2 (केल्सीफेराल संश्लेषित विटामिनD)
  • विटामिन D (इरेडिएटेड डीहाइड्रोकोलेस्टेरॉल)
  • विटामिन ‘E’
  • विटामिन ‘K’

विटामिन बी काम्प्लेक्स (Vitamin B Complex in Hindi)

विटामिन B कॉम्प्लेक्स (B Complex) एक महत्वपूर्ण विटामिन है। यह विटामिन जल में घुलनशील है। यह कोई एक विटामिन नहीं है बल्कि विभिन्न विटामिनो का एक समूह है। इस समूह के विभिन्न विटामिनो के गुण, कार्य, प्रभाव, आदि भी इस समूह के मुख्य विटामिन है।

विटामिन बी1 या थायमिन, राइबोफ्लेविन, या बी2, निकोटिनिक एसिड और निकोटिनामाइड, नियासिन और नियासिनमाइड, पाइरिडाक्सिन, विटामिन बी6, पेंटथीनिक एसिड, फोलिक एसिड, बायोटिन, कोलिन, पी-एमीनो बैन्जोइक एसिड, तथा विटामिन B12 विटामिन ‘बी’ कॉम्प्लेक्स समूह के मुख्य विटामिनो का संक्षिप्त परिचय विस्तार से दिया गया है।

1.थायमिन और विटामिन बी1 (Thiamin Or Vitamin B1)

थायमिन और विटामिन B1 की खोज ‘बेरी-बेरी’ रोग के कारणों की खोज के संदर्भ में हुई थी। इस विटामिन की खोज सन 1880 ई. में डा. तकाकी ने प्रारम्भ किया गया था। इसके बाद सन 1897 आइकमैन तथा सन 1911 में फंक महोदय ने इस क्षेत्र में सहरनीय कार्य किया। फंक महोदय ने पक्षियों में पाये जाने वाले बेरी-बेरी नामक रोग के उपचार के लिए चावल के ऊपरी परत से एक पदार्थ रवे के रूप में प्राप्त किया तथा इस पदार्थ को ही विटामिन  B1 कहा गया।

बाद में मैकालम जानसेन तथा डोनेथ आदि वैज्ञानिको ने विटामिन B1 को बेरी-बेरी नामक रोग से बचाव के लिए अनिवार्य तत्व बताया। इसके बाद सन 1935 ई. में विलियम्स ने विटामिन ‘बी’ की रासायनिक संरचना को ज्ञात किया तथा पता लगाया कि इसमें थाइजोल समूह उपस्थित है। इसलिए इसे थायमिन भी कहा जाने लगा।

विटामिन बीके स्रोतों (Sources Of Vitamin B1)

थायमिन को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त किया जा सकता है। यह विटामिन वसा,  तेल तथा शर्करा को छोड़कर अन्य अधिकांश खाद्य-पदार्थो में उपस्थित होता है। गेहू चावल की ऊपरी परत,  अंकुरित धान,  मूंफली, हरी मटर तथा विभिन्न फलो के रस आदि में यह विटामिन पर्याप्त मात्रा में विद्ममान होता है। दूध में इस विटामिन की केवल अल्प मात्रा ही पाई जाती है।

थायमिन के कार्य एवं महत्व (Functions And importance of Thiamine)

शरीर के लिए थायमिन के कार्य या उपयोगिता का विवरण निम्मन रूप से किया जा सकता है। जो कि इस लेख में विस्तार से दिया गया है।

कार्बोहाइड्रेट के चयापचय में योगदान (Contribute To The Metabolism Of Carbohydrates)

आप को बता दे थायमिन या विटामिन बी1 कार्बोज के चयापचय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस प्रक्रिया में यह सहायक के रूप में काम करता है।

तंत्रिका-तंत्र के संचालन में योगदान  (Contribute To The Functioning of The Nervous System)

थायमिन परिधीय तंत्रिका-तंत्र के कामो के उचित संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यदि थायमिन की कमी हो जाए तो पैर की मांसपेशियों में खिंचाव आने लगता है। आँखों के आगे अँधेरा-सा छाने लगता है, चक्कर आने लगता है, कब्ज हो जाता है। तथा कानो में भन-भनाहट सी होने लगती है।

थायमिन की कमी के परिणाम  (Consequences Of Thiamine Deficiency)

यह स्पष्ट है कि शरीर के उचित नियमन में थायमिन की महत्व भूमिका होती है। इस विटामिन की कमी या अभाव के शरीर पर काफी प्रभाव देखे जा सकते है। जो कि विस्तार से दिया गया है।

  • शरीर में थायमिन की कमी होने से व्यक्ति का स्वभाव चिड़चिड़ा तथा झगड़ालु हो जाता है, जीवन में अरुचि व अलगाव-सा होने लगता है तथा किसी भी विषय में ध्यान लगाने में कठनाई हो जाता है।
  • इसकी कमी से शरीर का स्वाभाविक विकास भी अवरुद्ध होने लगता है। वास्तव में यह विटामिन शरीर की स्वाभाविक वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।
  • थायमिन की कमी से बुरा प्रभाव भूख पर पड़ता है। इसकी कमी से भूख घटने लगती है।
  • इस विटामिन की कमी का सबसे गंभीर प्रभाव बेरी-बेरी नामक रोग के रूप में देखा जा सकता है।
  • इस विटामिन की कमी का बुरा प्रभाव राइबोफ्लेविन के जमा करना पर भी पड़ता है। इस स्थिति में राइबोफ्लेविन का उचित जमा करना नहीं हो पाता।

2. राइबोफ्लेविन या B2 (Riboflavin)

राइबोफ्लेविन भी B समूह का एक विटामिन है। इसे विटामिन B2 भी कहते है। इस विटामिन के भी शारीरिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक माना गया है। इस विटामिन का कुछ मात्रा में निर्माण हमारी आँतो में विद्ममान जीवाणुओ द्वारा भी होता है। राइबोफ्लेविन नामक इस विटामिन का विवरण विस्तार से दिया गया है।

राइबोफ्लेविन के स्रोतों (Sources Of Riboflavin)

राइबोफ्लेविन की पाये जाने का मुख्य स्रोत दूध है। इसके अलावा पनीर, अण्डे, हरी पत्तिदार सब्जियाँ, एवं समुंद्र में पाये जाने वाली मछलिया में भी विटामिन की कुछ मात्रा अवश्य होती है। अंकुरित दाले एवं अनाजों में भी इस विटामिन की कुछ मात्रा होती है।

राइबोफ्लेविन के कार्य (Functions Of Riboflavin)

राइबोफ्लेविन शरीर के विकास में सहायता देता है। यदि इसकी समुचित मात्रा न मिले तो शरीर की वृद्धि पर काफी असर पड़ता है। इसके अलावा राइबोफ्लेविन का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य को एन्जाइम (Co-Enzyme) के रूप में है। शरीर की विभिन्न क्रियाओ के परिचालन में राइबोफ्लेविन अन्य एंजाइमों के साथ मिलकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह विटामिन इस रूप कार्बोहाइड्रेड, वसा तथा प्रोटीन के चयापचय में सहायक होता है।

राइबोफ्लेविन की कमी से होने वाले रोग (Riboflavin Deficiency Diseases)

सही मात्रा में राइबोफ्लेविन न मिलने पर इसकी कमी के कारण होने वाले रोग निम्मन प्रकार के है। जो कि विस्तार से बताया गया है।

  • राइबोफ्लेविन की कमी से आँखों पर बुरा असर पड़ता है। इस स्थिति में आँखे सूज जाती है तथा धुंधला दिखाई देने लगता है इसके अलावा आँखों में खुजली और जलन भी होने लगती है।
  • राइबोफ्लेविन की कमी का त्वचा पर भी काफी बुरा असर पड़ता है। इस स्थिति में चेहरे की त्वचा पर जगह-जगह पर उभार से हो जाते है। कभी-कभी त्वचा लाल भी होने लगता है। तथा खुजली भी होने लगती है।
  • राइबोफ्लेविन की कमी से जीभ पर भी काफी बुरा असर पड़ता है। ऐसे में जीभ का रंग कुछ-कुछ बैगनी-लाल-सा हो जाता है। और भोजन करते समय जलन और दर्द भी होने लगता है।
  • राइबोफ्लेविन की कमी से कर्बोज का चयापचय भी ठीक प्रकार से नहीं हो पाता।
  • यदि राइबोफ्लेविन की शरीर में ज्यादा कमी हो जाए तो खून की सफेद कणो की विभिन्न रोगो के साथ लड़ने की क्षमता काफी घट जाती है।
  • ऐसा देखने में आया है कि बूढ़ो में राइबोफ्लेविन की कमी हो जाए तो उनके अंडकोषों में घाव हो जाते है।

3. नियासिन और निकोटिनिक एसिड (Niacin or Nicotinic Acid)

नियासिन और निकोटिनिक एसिड की खोज पेलेग्रा नामक रोग के कारणों की खोज के संदर्भ में हुई थी। यह विटामिन भी पानी में घुल जाता है। यह रंगहीन होने के साथ-साथ स्वाद में कसैला तथा आकार में सुई के सामान होता होता है। इस विटामिन पर ताप, वायु, प्रकाश, क्षार, तथा अम्ल का किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता यानि इनकी उपस्थिति में यह नष्ट नहीं होता। इस लिए इस विटामिन से युक्त भोज्य-पदार्थो को गर्म करने तथा पकाने से भी विटामिन नष्ट नहीं होता।

नियासिन और निकोटिनिक एसिड के स्रोतों (Sources Of Niacin And Nicotinic Acid)

कुछ मात्रा में निकोटिनिक एसिड का निर्माण हमारी आँतो में विद्ममान बैक्टीरिया द्वारा भी होता है। इसके साथ-ही-साथ ट्रिप्टोफेन ऐमीनो अम्ल से भी इसका निर्माण होता है। इस निर्माण के अलावा विभिन्न खाद्य-पदार्थो में भी यह विटामिन सही मात्रा में पाया जाता है। जैसे छिलके सहित अनाज, दूध, मक्खन, पिस्ता, बादाम, खमीर, यकृत, मांस, और अंडो में यह विटामिन सही मात्रा में पाया जाता है।

नियासिन के कार्य (Function Of Niacin)

नियासिन के कार्य निम्मन प्रकार के है।

  • यह एक को-एन्जाइम के रूप में कार्य करता है। इस रूप में यह ऑक्सीकरण की क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कार्बोहाइड्रेड, वसा तथा प्रोटीन के चयापचय में सहायक होता है।
  • मधुमेह नामक रोग में दिए जाने वाले इन्सुलिन के प्रभाव के बढ़ाने में भी काफी सहायक होता है।
  • शरीर के स्नायु-कोषों तथा रक्त-कोषों की सही क्रियाशीलता और स्वास्थ के लिए निकोटिनिक एसिड महत्वपूर्ण होता है।
  • पाचन संस्थान के गंभीर विकारो में भी निकोटिनिक एसिड को लाभदायक माना जाता है।
  • शरीर में थैलियम या लैड के विष के व्याप्त हो जाने पर निकोटिनिक एसिड द्वारा उपचार किया जाता है।
  • यह पेलेग्रा नामक रोग के उपचार के लिए भी लाभदायक है, क्योकि इसी विटामिन की कमी के परिणामस्वरूप पेलेग्रा नामक रोग होता है।

4. फोलिक एसिड (Folic acid in Hindi)

फोलिक एसिड भी एक महत्वपूर्ण विटामिन है। शरीर के नियमित रूप से काम करने के लिए इस विटामिन का होना अति आवश्यक है। यह विटामिन कुछ जीवाणुओ की वृद्धि और विकास में सहायक होता है। इस विटामिन का रंग पीला-नारंगी सा होता है। यह स्वादरहित, गंधरहित और सुई के आकर का होता है। इस पर ताप का कोई असर नहीं पड़ता, लेकिन अम्ल के असर से इसका विघटन हो जाता है। इस पर प्रकाश का भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

फोलिक एसिड के स्रोत (Sources Of Folic Acid)

लीवर, खमीर और हरी साग-सब्जियाँ या अन्य सब्जियों की अपेक्षा पालक में इसकी अधिक मात्रा पाई जाती है। हमारी आंतो में कुछ ऐसे जीवाणु होते है जी इस विटामिन का निर्माण करते है।

फोलिक एसिड के कार्य (Function Of Folic Acid)

फोलिक एसिड को एन्जाइम के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह रक्त के निर्माण में भी सहायक होता है। फोलिक एसिड बायोटिन के साथ मिलकर लिवर में पैटोथीनिक एसिड के संग्रह में सहायक होता है। इसका भूख पर भी असर पड़ता है। यानि इससे भूख बढ़ती है।

फोलिक एसिड की कमी (Folic Acid Deficiency)

  • फोलिक एसिड की कमी से खून की कमी हो जाती है। जिसके परिणामस्वरूप एनीमिया नामक रोग हो जाता है। इसके साथ ही साथ शरीर का वजन भी घटने लगता है तथा शरीर पीलापन आने लगता है। यह एनीमिया मैग्लोब्लास्टिक कहलाता है।
  • इस विटामिन की कमी से खून में जमने की क्षमता घटने लगती है , यानि चोट लगने या कट जाने पर बहने वाला खून जल्द नहीं रुकता, क्योकि खून में थक्के नहीं जमते।
  • इस विटामिन अर्थात फोलिक एसिड की कमी का प्रतिकूल असर शरीर के विभिन्न स्थानों पर पड़ता है। पहला इसकी कमी से खून सफेद कणो की शक्ति कमजोर पड़ जाती है। कमजोरी के कारण खून के विभिन्न रोगो के कीटाणुओं से लड़ने की क्षमता घट जाती है। इसके साथ-ही-साथ शरीर दुर्बल हो जाता है। तथा सॉस लेने की गति तेज़ हो जाती है। फोलिक एसिड की कमी से खून संचालन सुचारु रूप से नहीं होता है।

विटामिन बी12 (Vitamin B12)

विटामिन B12 की खोज परनिशिया एनीमिया के कारणों की खोज के संदर्भ में हुई थी। विटामिन B12 लाल रंग का एक रवेदार यौगिक होता है। इस विटामिन की प्राप्ति के मुख्य स्त्रोत है- मांस, मछली, अण्डा, तथा लीवर। इसके अलावा यह विटामिन घास और धानो में पर्याप्त मात्रा में विद्ममान रहता है। यह विटामिन शरीर के कोषों में होने वाले चयापचय की काम में एक को एन्जाइम के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

इसके अलावा यदि शरीर में इस विटामिन की कमी हो जाये तो एनीमिया हो जाता है। इसके अभाव में फोलिक एसिड की रक्त के लाल कणो के निर्माण की काम भी बंद हो जाती है। इसकी कमी से शरीर की वृद्धि भी बंद हो जाती है।

विटामिन सी के स्रोत और उपयोगिता (Source of Vitamin C in Hindi)

विटामिन C मानव शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक विटामिनो में विटामिन ‘सी’ या एस्कार्बिक एसिड भी एक है। यह पानी में घुलनशील है। इस विटामिन की खोज स्कर्वी नामक रोग के कारणों की खोज के संदर्भ में हुई थी। इस विटामिन की खोज डा. लिंड ने की थी।

विटामिन सी के स्रोत (Sources Of Vitamin C)

विटामिन ‘सी’ की प्राप्ति के मुख्य स्रोत है। खट्टे फल इनमे नीबू, नारंगी संतरा,अमरूद, अनन्नास, तरबूज आदि मुख्य है। इसके अतिरिक्त आँवला भी विटामिन ‘सी’ का अक अति उत्तम स्रोत  है। हरे पत्तो वाली सब्जियाँ जैसे टमाटर, गोभी, सलाद, आदि में भी यह विटामिन उपस्थित होता है। दूध में यह विटामिन केवल  कम मात्रा में ही होता है। यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि विटामिन ‘सी’ कच्ची सब्जियाँ एवं फलों में अधिक मात्रा में विद्ममान होता है। इनको अधिक उबालने या पकाने से विटामिन सी का विनास होता है। आँवले में विद्ममान विटामिन सी पर ताप का विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।

विटामिन सी के गुण (Properties Of Vitamin C)

जैसा कि पहले ही स्पष्ट किया जा चूका है,  विटामिन ‘सी’ पानी में घुलनशील होता है। यह विटामिन आकर में रवेदार तथा गन्धरहित होता है। इसका रंग सफेद है। अधिक ताप में यह नष्ट हो जाता है। सूर्य के तेज़ प्रकाश का भी इस विटामिन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

क्षारीय माध्यम में यह शीघ्र ही नष्ट हो जाता है, लेकिन अम्लीय माध्यम में इस पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ता यदि विटामिन सी युक्त फलों एवं सब्जियाँ को सीधा धूप में सुखाया जाये तो इनमे विद्ममान विटामिन ‘सी’ काफी मात्रा में नष्ट हो जाता है, लेकिन यदि आधुनिक वैज्ञानिक विधियों से इन फलो एवं सब्जियां का सफाई किया जाये तो काफी मात्रा में विटामिन ‘सी’ बना रहता है।

विटामिन सी की दैनिक आवश्यकता (Daily Requirement Of Vitamin C)

मनुष्य को विटामिन सी की निरंतर आवश्यकता होती है। विटामिन सी की आवश्यकता की पूर्ति हम अपने आहार में ऐसे भोज्य पदार्थो को ग्रहण कर के ही कर सकते है, जिनमे यह विटामिन पर्याप्त मात्रा में विद्ममान होता है। विभिन्न खोज द्वारा सिद्ध हो गया है की एक नार्मल मनुष्य को डेली कम-से-कम 20 से 30 मिली ग्राम विटामिन सी की आवश्यकता होती है।

इतनी मात्रा में विटामिन सी ग्रहण करने से स्कर्वी नामक रोग से बचा जा सकता है। वैसे भिन्न-भिन्न आयु एवं अवस्था वाले व्यक्तियों को भिन्न-भिन्न मात्रा में विटामिन सी की आवश्यकता होती है। गर्भवती और दूध पिलाने वाली महिला को विटामिन सी काफी अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। इस अवस्था में 100 से 150 मिली ग्राम तक दैनिक आवश्यकता होती है।

विटामिन सी उपयोगिता और महत्व (Vitamin C Uses And Importance)

विटामिन सी हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार से महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस विटामिन की उपयोगिता एवं महत्वूर्ण कार्यो को निम्मन रूप से वर्णित किया जा सकता है।

  • विटामिन सी का एक महत्वपूर्ण कार्य शरीर में कोलेजन (Collagen) का निर्माण करना है। कोलेजन का विशेष नियामक महत्व है। यह शरीर के विभिन्न कोषों को सम्बन्ध प्रदान करने में अनिवार्य है। इससे हमारे शरीर के घाव भरने में भी सहायता मिलती है। इसी से दातो के अंदर वाला सीमेंट तथा लम्बी हड्डियों के सिरे पर पाया जाने वाला सीमेंट बनता है।
  • विटामिन सी कैल्सियम तथा लौह खनिज लवणों के उचित शोषण में भी योगदान देता है। यह लौह को फैरस अवस्था (Ferrous Stage) में परिवर्तित कर देता है, जिसका शरीर सरलता से शोषण हो जाता है।
  • यह विटामिन एक को एन्जाइम के रूप में काम करता है। यह टायरोसिन नामक एमिनो अम्ल के चयापचय में विशेष सहयोग देता है।
  • विटामिन सी पीयूष ग्रंथि के सही रूप में काम करने में सहायक होता है।

विटामिन E (Vitamin E in Hindi)

विटामिन E एक वसा-घुलित विटामिन है। इस विटामिन का रासायनिक नाम टोकोफिरोल (Tocopherol) है। इस विटामिन की खोज का श्रेय सर्वश्री मैटिल, ईवान्स तथा सूर नामक वैज्ञानिकों को है।

विटामिन E के स्रोत (Sources Of Vitamin E)

विटामिन E मुख्य रूप से अनाजों के अंकुरों में पाया जाता है। इसमें भी गेहू तथा मक्का के अंकुरों में इसकी पर्याप्त मात्रा होती है। इसके अलावा बिनौले तथा ताड़ में भी इस विटामिन की कम मात्रा में विद्ममान रहती है। विटामिन ई थोड़ा मात्रा में हरी सब्जियाँ लीवर तथा गुर्दे में भी पाया जाता है।

विटामिन E के गुण (Properties Of Vitamin E)

विटामिन E जल में घुलित होता है, लेकिन वसा में घुल जाता है। इस विटामिन पर अम्लीय माध्यम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता तथा उच्च ताप से भी यह अप्रभावित ही रहता है। लौह और जस्ते के बर्तन में पकाने से इस विटामिन की पर्याप्त मात्रा नष्ट हो जाती है। इसके अतिरिक्त, यदि अधिक समय तक चिकनाई युक्त पदार्थो में रखा जाये तो ऑटो ऑक्सीडेशन के परिणामस्वरूप विटामिन E की कुछ मात्रा का विनाश हो जाता है। यदि विटामिन सूर्य की पराबैगनी किरणों के संपर्क में आता है। तो इसके प्रभाव के परिणामस्वरूप इसका विघटन हो जाता है।

विटामिन E के दैनिक आवश्यकता (Daily Requirement of Vitamin E)

आयु लिंग एवं अवस्था के अनुसार भिन्न-भिन्न मात्रा में विटामिन E की आवश्यकता होती है। वैसे सामान्य रूप से एक व्यक्ति के लिए 10  से 30  मिग्रा विटामिन ई प्रतिदिन काफी होता है।

विटामिन E के कार्य (Functions Of Vitamin E)

शरीर के लिए विटामिन E के कार्यो एवं महत्व का निम्मन प्रकार के है।

  • नर तथा मादा दोनों को ही प्रसाव की शक्ति एवं क्षमता प्रदान करना विटामिन E का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसलिए कहा जा सकता है। कि इस विटामिन के अभाव में मनुष्यो में बांझपन के लक्षण दिखाई देने लगते है।
  • यह विटामिन विभिन्न ग्रंथियों जैसे पिट्यूटरी, एड्रीनल तथा अण्ड ग्रंथियों की क्रियाओं के समुचित रूप से होने में सहायक होता है।
  • यह विटामिन शरीर के लिए आवश्यक कुछ अन्य विटामिनो की रक्षा के लिए आवश्यक होता है।

विटामिन E की कमी के प्रभाव (Effects Of Vitamins E Deficiency)

इस विटामिन की कमी या प्रभाव का विभिन्न प्रकार से शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। सर्वप्रथम कहा जा सकता है, कि इस स्थिति में प्रसाव की क्षमता का विनाश हो जाता है। इसके अतिरिक्त विभिन्न मसलेशियों का विकास भी सुचारु रूप से नहीं हो पाता तथा विभिन्न ग्रंथियों से सम्बंधित रसों का समुचित स्राव भी नहीं होता।

विटामिन A (Vitamin A in Hindi)

अंडो की जर्दी तथा मक्खन में ऐसा तत्व भी है, जो वसा तथा हरी सब्जियों में नहीं पाया जाता लेकिन शारीरिक वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक होता है। इसी तत्व को विटामिन ए का नाम दिया गया है। बाद में न्यूफाउण्डलैंड और नावें के लोगों के आहार एवं स्वास्थ का अध्ययन करके भी निष्कर्ष निकाला गया कि समुद्री मछली के लीवर को खाने वाले व्यक्ति नेत्र रोगो से मुख्त पाये गये, जबकि अन्य व्यक्तियों को कुछ नेत्र रोगों का शिकार पाया गया।

इस अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाला गया की मछली के लीवर में विटामिन A पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। अनेक परीक्षणो  के बाद अंतिम में ज्ञात हो गया कि गाजर तथा नारंगी रंग के सभी भोज्य पदार्थो में एक खास पदार्थ पाया जाता है। जिसे कैरोटीन (Carotene) कहा जाता है। यह कैरोटीन ही हमारे शरीर में पहुंचकर विटामिन ए के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

विटामिन A के स्रोत (Sources of Vitamin A in Hindi)

विटामिन A को प्राणी जगत और वनस्पति जगत दोनों स्त्रोतों से प्राप्त किया जा सकता जा सकता है। पशु जगत में विटामिन ए के मुख्य स्रोत है। घी, मक्खन, दूध, दही, और अण्डे की जर्दी लेकिन इन सब से अधिक मात्रा में यह विटामिन मछली के लीवर में पाया जाता है। मछली के लीवर के तेल में इसकी मात्रा सबसे अधिक होती है। इसके अलावा विभिन्न वनस्पति स्त्रोतों से भी विटामिन A को प्राप्त किया जा सकता है। गाजर, टमाटर, पपीता, सीताफल, संतरा, रसभरी, कद्दू ,पालक, आदि में भी विटामिन A अच्छी मात्रा में पाया जाता है।

विटामिन A कार्य और उपयोगिता

(Functions And Utility Of Vitamin A)

विटामिन A शरीर के सुचारु रूप से कार्य करने के लिए विशेष रूप से  उपयोगी होता है। जो कि कुछ इस प्रकार के है।

  • आँखों के लिए महत्व- आँखों के स्वास्थ और नेत्र ज्योति के लिए विटामिन A विशेष रूप से उपयोगी है। यदि इस विटामिन की कमी हो जाती है तो मंद प्रकाश में देखना मुश्किल हो जाता है।
  • शरीर के विकास में सहायक- शरीर को समुचित वृद्धि और विकास में विटामिन A का महत्वपूर्ण योगदान होता है। इसलिए इस विटामिन को वृद्धि वर्धक कारक (Growth Promoting Factor) भी कहते है।
  • एपिथीलियम टिशू के लिए उपयोगी- त्वचा के कुछ भाग एपिथीलियम टिशू से बने होते है। विटामिन ए इन एपिथीलियम टिशू को स्वस्थ बनाये रखने में सहायक होता है।
  • पाचन क्रिया में सहायक- विटामिन A पाचन क्रिया में भी सहायक होता है। यह अमाशय और क्लोम ग्रंथियों के कार्यो में सहायक होता है। इस प्रकार यह पाचन क्रिया को सुचारु बनाता है।
  • रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रदान करना- विटामिन A शरीर को रोगो से बचने और उनका मुकाबला करने की क्षमता प्रदान करता है।
  • चयापचय में सहायक- शरीर में कार्बोज के समुचित चयापचय में विटामिन ए विशेष रूप से सहायक होता है।

विटामिन A की अधिक से हानियाँ (Disadvantages Of Excess Of Vitamin A)

यदि आवश्यकता से अधिक मात्रा में विटामिन A ग्रहण किया जाये तो उसका प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ता है। इसका स्थिति में शरीर में एक प्रकार का विष व्याप्त हो जाता है। इसके साथ-ही-साथ विभिन्न विकार उत्पन्न होने लगते है, जैसे कि स्वभाव का चिड़चिड़ा होना, थकावट महसूस करना, नींद का अधिक आना, सुस्ती रहना, वजन का कम होना, पाँव और टखनों में सूजन का आ जाना। इसके अलावा इस विटामिन की अधिकता के परिणामस्वरूप लीवर और तिल्ली भी बढ़ जाते है, त्वचा रूखी और उधीड़ी हुई हो जाती है, रीढ़ की हड्डी में पीड़ा होने लगती है और जोड़ो में दर्द होने लगता है।

विटामिन D (Vitamin D in Hindi)

विटामिन D भारत में एक सर्वसुलभ विटामिन है। क्योकि इसे प्राप्त करने का महत्वपूर्ण स्रोत सूर्य की पराबैगनी किरणें (Ultra Violet Rays) है। इस विटामिन की खोज अस्थि विकृति के कारणों की खोज के संदर्भ में हुई थी। इस विटामिन की खोज के लिए सफल प्रयास बारी-बारी सर्वश्री मैलनबाय (Mellanby)  मैकालम (Mecollum) और बिल्स (Bills) ने किये।

विटामिन D  के स्रोत (Source of Vitamin D in Hindi)

विटामिन D एक ऐसा विटामिन है जिसे आहार के अतिरिक्त एक अन्य स्रोत से भी प्राप्त किया जा सकता है। इस विटामिन की प्राप्ति के स्त्रोतों को दो वर्गों में अलग किया जा सकता है। पहला स्रोत है। विटामिन D युक्त आहार और दूसरा स्रोत है। सूर्य की पराबैगनी किरणें। आहार में विटामिन डी की प्राप्ति की स्रोत केवल पशु-जगत से प्राप्त होने वाले भोज्य-पदार्थ ही है। इस वर्ग के मुख्य भोज्य-पदार्थ है। दूध, मक्खन अण्डे की जर्दी , और दूध से बना घी।

विटामिन D के कार्य और उपयोगिता (Functions And Utility Of Vitamin D)

विटामिन D का एक महत्वपूर्ण कार्य शरीर के समुचित विकास एवं वृद्धि (Growth) में योगदान देना है। यदि विटामिन डी की समुचित मात्रा शरीर को न मिले तो शरीर की स्वाभाविक वृद्धि अवरुद्ध हो जाती है। विटामिन D का दूसरा मुख्य कार्य अस्थियों को विकार रहित बनाये रखना भी है। विटामिन डी से अस्थियों को मजबूती प्राप्त होती है। यदि शरीर को समुचित मात्रा में विटामिन D न मिले तो हड्डी तोडना-मरोड़ना (Rickets) नामक रोग हो जाता है।

इस रोग का शिकार मुख्य रूप से बच्चे ही होते है। बुजुर्ग व्यक्तियों में विटामिन D की कमी से आस्टि ओमेलेशिया (Osteomalacia) नामक रोग हो जाता है। इस अवस्था में अस्थियों की मजबूती कम हो जाती है। और मामूली सी ठेस से ही अस्थि टूटने का भय रहता है। इसके अतिरिक्त कैल्सियम और फॉस्फोरस के शोषण में भी विटामिन D सहायक हुवा करता है। विटामिन D की उपस्थिति में कैल्सियम और फॉस्फोरस का शोषण अच्छी प्रकार से होता है।

विटामिन D के गुण (Properties Of Vitamin D)

विटामिन D वसा और उन विलायकों में घुल जाता है, जिनमे वसा घुल जाती है। इसका रंग सफेद और आकार रवेदार होता है। इसमें किसी प्रकार की गंध नहीं होती। यह एक ऐसा रासायनिक यौगिक है जो कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के सहयोग से बना है। विटामिन D पर ताप का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता अर्थात ताप से नष्ट नहीं होता। यह अम्ल और क्षार के प्रति भी स्थिर रहता है यानि इन माध्यमों में यह नष्ट नहीं होता।

विटामिन D की अधिक से हानियाँ (Disadvantages Of Excess Of Vitamin D)

यदि निरंतर रूप से आवश्यकता से अधिक विटामिन D ग्रहण किया जाता रहे तो इस अधिकता के परिणामस्वरूप शरीर में एक प्रकार का विष उत्पन्न हो जाता है। इसके साथ-ही-साथ शरीर आवश्यकता से अधिक कैल्सियम और फॉस्फोरस इकठ्ठा हो जाता है। यह अतिरिक्त कैल्सियम गुर्दो और रक्तवाहिनियों में इकठ्ठा होता है। इससे अनेक प्रकार के कष्ट होते है।

विटामिन D की अधिकता से अपच, भूख, न लगना, चक्कर आना, अधिक और बार-बार प्यास का लगना आदि विकार उत्पन्न हो जाते है। इस स्थिति में व्यक्ति अधिक थकावट और बेचैनी एवं उदास अनुभव करता है। याद शक्ति पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

विटामिन K (Vitamin K in Hindi)

विटामिन K भी एक वसा घुलित विटामिन है। इस विटामिन की खोज मुर्गी के बच्चों में होने वाले रक्त स्त्राव के कारणों के संदर्भ में हुई थी। बाद में ज्ञात किया गया कि इस वर्ग के दो विटामिन होते है। जिन्हे K1 और K2 कहा गया है। लेकिन विटामिन K2  हमारे शरीर में आँतो में विभिन्न बैक्टीरिया के साथ मिलाया हुवा रहता है।

विटामिन K के स्रोत (Source of Vitamin K in Hindi)

विटामिन K रक्त प्राप्ति के विभिन्न स्रोत है। यह सब्जियाँ, अनाजों एवं पशु-जगत से प्राप्त किया जा सकता है। यह पालक, पत्ता गोभी, फूल गोभी, और करमकल्ला में मुख्य रूप से विद्ममान होता है। यह गेहू की भूसी, गाजर और आलू में भी कुछ मात्रा में पाया जाता है। कम मात्रा में यह दूध, मांस और मछली में भी उपस्थित होता है।

विटामिन K के कार्य (Functions Of Vitamin K)

विटामिन K खून में वह क्षमता पैदा करता है। जिसके फल स्वरूप बहता हुवा खून जमकर थक्का बनता है। और खून का बहना रुक जाता है। यह क्रिया खून प्रोथ्रॉम्बिन की उचित मात्रा के कारण होता होता है।

विटामिन K कमी के परिणाम (Consequences Of Vitamin K Deficiency) 

शरीर में विटामिन के की कमी के परिणामस्वरूप चोट आदि लग जाने पर बहता हुवा रक्त आसानी से नहीं रुकता। विटामिन के की कमी की अवस्था में यदि मसूड़ों में थोड़ी सी भी रगड़ लग जाये तो रक्त बहने लगता है। विटामिन के की कमी परिणामस्वरूप होने वाले इस रोग को गुप्त हाइपो थ्रॉम्बिनेमिया कहते है।

 

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