कुष्ठ रोग के लक्षण कारण और बचने के उपाय-Leprosy (Symptoms) In Hindi

कुष्ठ रोग (Leprosy) एक भयंकर संक्रामक रोग है। यह रोग त्वचा से   धीर-धीरे बढ़ने वाला भयंकर संक्रामक रोग है  इस रोग के संक्रामक के परिणामस्वरूप शरीर पर चकते हो जाते है। जो क्रमश घावों में परिवर्तित हो जाते है तथा असहनीय कष्ट होता है। यह रोग 10 वर्ष से 30 वर्ष  आयु वाले व्यक्तिओ को ही हुवा करता है यह रोग भयंकर होने के साथ बहुत कठिनता से ही ठीक हो पाता है। विश्व के अनेक भागो में यह रोग प्राचीन काल से ही पाया जाता रहा है। गर्म जलवायु वाले देशो में इसका प्रकोप अधिक होता है।इस लेख में आप को कुष्ठ रोग के लक्षण कारण और उससे बचने के उपाय के बारे में विस्तार से बताया गया है।

कुष्ठ रोग किस कारण होता है। (What Causes Leprosy in Hindi)

जैसा की स्पष्ट किया जा चूका है कुष्ठ रोग एक संसगर्जन्य संक्रामक रोग यह रोग माइक्रोबैक्टेरियम लेप्री नामक जीवाणु के शरीर में प्रवेश करने परिणामस्वरूप उत्पन्न होता है सामान्य रूप से ये जीवाणु त्वचा के माध्यम से व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करते है यदि त्वचा कटी-फटी हो या उसमे कोई फोड़ा-फुंसी हो तो जीवाणुओं के प्रवेश की अधिक आशंका रहती है। शरीर में प्रवेश करने के पश्चात ये रोगाणु क्रमशः त्वचा नाड़ियों तथा लसिका ग्रन्थियो को प्रभावित करते है।

कुष्ठ रोग के जीवाणु रोगी व्यक्ति के त्वचा के घावों थूक तथा नक् के स्त्राव में विधमान होते है। इन माध्यमों के सम्पर्क में आने के परिणामस्वरूप रोग के संक्रमण की आशंका होती है। यह स्पष्ट कर देना आवश्यक है की किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में कुष्ठ रोग के जीवाणुओं के प्रवेश के परिणामस्वरूप रोग उत्पन्न हो जाए यह अनिवार्य नहीं है की यदि न्यून मात्रा अर्थात कम संख्या में जीवाणुओं का शरीर में प्रवेश हो तो सामन्य रूप से स्वस्थ व्यक्ति के शरीर पर इनका बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।

इसके अतिरिक्त यदि स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में रोग प्रतिरक्षा क्षमता पर्याप्त विकसित हो तो भी व्यक्ति रोग से बचा रहता है। जैसा स्पष्ट किया जा चूका है की कुछ कुष्ठ रोग त्वचा के माध्यम से संक्रमित होता है। अतः त्वचा की स्वछता का समुचित ध्यान रखने पर भी रोग के संक्रमण से बचा जा सकता है।

रोग का सम्प्राप्ति– काल कुष्ठ रोग का सम्प्राप्ति काल काफी अधिक है। शरीर में रोगाणुओं के संक्रमण के 2 माह से 4 वर्ष उपरान्त तक भी रोग के लक्षण उत्पन्न हो सकते है अर्थात कुष्ठ रोग की उदभवन अवधि 2 माह से 4 वर्ष तक हो सकती है।

कुष्ठ रोग के लक्षण (Symptoms Of Leprosy In Hindi)

कुष्ठ रोग मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है तथा रोग के दोनों प्रकारो के लक्षण भिन्न-भिन्न होते है।

अरसु ग्रथिंयो युक्त (Nodulus)- रोग का पहला प्रकार अरसु ग्रथिंयो युक्त (Nodulus) रोग है। रोग के इस प्रकार का मुख्य लक्षण है। शरीर की त्वचा में सूजन आ जाना रोग के प्रारम्भ होते ही त्वचा सूजने लगती है तथा शरीर पर लाल रंग के दाने भी उभरने लगते है ये दाने धीरे-धीरे सफ़ेद होने लगते है। तथा चकत्तों का रूप ग्रहण कर लेते है चकत्तों के स्थान पर जो बाल या रोम होते है। वे धीरे-धीरे झड़ने लगते है। रोग का प्रकोप शरीर के खुले भागो में अधिक होता है रोग के प्रारम्भ होने के साथ-साथ ज्वर भी होने लगता है रोगी रोगी ठण्ड का अनुभव करता है तथा गले में एक प्रकार की गिल्टिया भी बनने लगती है रोग का प्रभाव व्यक्ति की वाणी पर भी पड़ता है रोगी की आवाज भारी तथा भद्दी होने लगती है रोगी को सामान्य से काफी अधिक पसीना आता है। रोग के बढ़ने की स्थिति में हाथों और पैरो की उंगुलियों में घाव हो जाते है। तथा वे धीरे-धीरे गलने लगती है।

चेतनाहीन नाड़ी संबन्धी (Anasthetic leprosy)- कुष्ठ रोग का दूसरा मुख्य प्रकार चेतनाहीन नाड़ी संबन्धी (Anasthetic leprosy) रोग है। रोग के इस प्रकार के अन्तर्गत शरीर पर स्थान-स्थान पर लाल रंग के चकत्ते पड़ने लगते है। चकत्तों वाला स्थान धीरे-धीरे सुन्न होने लगता है। इन स्थनो पर हल्का दर्द भी होने लगता है। रोग बढ़ने पर चकत्तों के स्थान पर फफोले से पड़ने लगते है जो की बाद में स्वतः ही फूटने लगते है। फफोले फूटने के परिणामस्वरूप घाव हो जाते है। तथा घावों के रक्त एवं मवाद रिसने लगता है इस स्थिति में आते-आते शरीर की प्रायः सभी तंत्रिकाएँ सूजने लगती है रोग के बढ़ जाने पर हाथो और पैरो के अंगुलियों गलने लगती है। तथा शरीर से अलग भी हो जाती है।

कुष्ठ रोग से बचने के उपाय (Ways To Prevent Leprosy In Hindi)

कुष्ठ रोग एक छूत की बीमारी है। अतः इससे बचने के लिए निम्न उपाय किए जाने चाहिए।

  • स्वस्थ व्यक्तिओ को कुछ रोगियों के संपर्क से बचना चाहिए इस उद्देश्य से कुष्ठ रोगियों की बस्ती अलग रखनी चाहिए या कुष्ठ रोगी को कुष्ठ आश्रम में रखनी चाहिए।
  • शारीरक एवं वातावरण की स्वच्छता का अधिक से अधिक ध्यान रखना चाहिए।
  • जन-साधारण को रोग सम्बन्धी समुचित जानकारी दी जानी चाहिए ताकि लोग रोग के प्रति सचेत रहे।
  • रोग सम्बन्धी प्रारम्भिक लक्षण प्रकट होते ही कुष्ठ रोग के विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए।
  • रोग से बचने के लिए कुष्ठ रोगी की किसी भी वस्तु को इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए रोगी के स्थान पर नियमित रूप से कीटाणुनाशक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।
  • कुष्ठ रोग के उपचार और देखभाल।

कुष्ठ रोग के उपचार और देख भाल (Leprosy Treatment and care in Hindi)

यह सत्य है। कि कुष्ठ रोगी का उपचार बहुत कठिन है। परन्तु अब कुछ ऐसी औषधियाँ तैयार कर ली गयी है जिनके नियमित तथा लम्बे समय तक प्रयोग द्वारा रोग का निवारण हो सकता है कुष्ठ रोगी के उपचार एवं देखभाल के लिए निम्न उपाय किये जाने चाहिए।

  • जैसी ही कुष्ठ रोग होने का संदेह हो तुरंत किसी विशेषज्ञ चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। रोग की प्रारम्भिक अवस्था में ही नियमित उपचार प्रारम्भ कर देने पर रोग से मुक्ति पाई जा सकती है।
  • रोगी व्यक्ति की शारीरिक स्वछता का विशेष ध्यान रखना चाहिए रोगी व्यक्ति की वस्तुओ, वस्त्रो आदि की कीटाणु मुक्त करने के उपाय करना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति के रहने के स्थान पर भी समय समय पर कीटाणुनाशक दवा का छिड़काव किया जाना चाहिए।
  • जहाँ तक हो सके रोगी व्यक्ति को अन्य स्वस्थ व्यक्तियों के संपर्क से दूर रखना चाहिए।
  • रोगी व्यक्ति के लिए सन्तुलित एवं पौष्टिक आहार की व्यवस्था की जानी चाहिए।

कुष्ठ रोग काफी खतरनाक संक्रामक रोग है। लेकिन इसे ठीक किया जा सकता है इसे न सिर्फ ठीक किया जा सकता है, बल्कि इससे बचना भी बेहद आसान है। इसलिए अगर आप के आसपास कोई भी व्यक्ति कुष्ठ रोगी है। तो उससे घृणा न करे बल्कि रोगी का उपचार कराए कुष्ठ रोगी को उचित देखभाल की जरुरत है। हम आप से उम्मीद करते है। कुष्ठ रोगी पे लिखा ये लेख आप के लिए काफी उपयोगी साबित होगा स्वस्थ सम्बन्धी ऐसे अन्य जानकारी पढ़ने के लिए जुड़े रहिए Onlyhealth.in से।

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