गर्भवती स्त्री के स्वास्थ तथा गर्भस्य शिशु के सुचारु विकास के लिए गर्भवती स्त्री के भोजन के सम्बन्ध में अग्रलिखित बातो को अनिवार्य रूप से ध्यान में रखना चाहिए।
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रत में सोने से कम-से-कम 2घण्टे पहले भोजन करना चाहिए और उसके बाद कुछ नहीं खाना चाहिए।
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एक बार में भरपेट भोजन न करके तीन या चार घण्टे के बाद थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए। भोजन सही समय पर ही करना चाहिए।
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भोजन के समय किसी प्रकार की चिंता, परेशानी, गुस्सा अथवा उत्तेजना से बचना चाहिए।
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भोजन हल्का, सुपाच्य, रुचिकर और पौष्टिक हो।
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भोजन के साथ पानी न पीकर भोजन के आधा घण्टे बाद पीना चाहिए।
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यदि सामान्य आहार से सभी विटामिन्स एवं खनिज समुचित मात्रा में उपलब्ध न हो तो इसकी पूर्ति के लिए अलग से गोलियाँ ली जानी चाहिए।
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गर्भावस्था में अंतिम 2-3माह के लिए नमक खाना कम कर देने से गर्भिणी के स्वास्थ को लाभ पहुँचता है।
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यदि डॉक्टर ने कोई विशेष आदेश दिया हो तो उसका ठीक से पालन करना चाहिए
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गर्भिणी के भोजन में 15%प्रोटीन, 25% चर्बी तथा 16% स्टार्च व शर्करा होनी चाहिए। इनके अतिरिक्त विटामिन और खनिज लवण की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए।
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इसी प्रकार पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व युक्त भोजन लेते रहने से गर्भस्थ शिशु की उचित वृद्धि तथा शारीरिक व मानशिक विकास होता है तथा माता का स्वास्थ भी ठीक रहता है।