प्रेगनेंसी टिप्स और प्रेगनेंसी के लक्षण-Pregnancy Tips in Hindi

गर्भावस्था प्रत्येक स्त्री की अत्यंत नाजुक अवस्था होती है। उससे पूरे 9 महीने अत्यंत कष्ट के दौर से गुजरना पड़ता है गर्भिणी की देखभाल में उसका स्वास्थ्य भोजन रहन-सहन आदि सभी बातें आती हैं। इसलिए गर्भिणी के स्वास्थ की उचित देखभाल आवश्यक है गर्भिणी की उचित देखभाल न होने के कारण उसे प्रसव के समय अत्यंत कष्ट व परेशानी हो सकती है। इसलिए गर्भिणी की देख-रेख के विषय में निम्मन पहलुओं का अध्ययन आवश्यक है।

प्रेगनेंसी टिप्स

इस लेख में आप की प्रेगनेंसी टिप्स गर्भवती महिला के लक्षण गर्भवती महिला के लिए भोजन और पौष्टिक आहार के बारे में सारी जानकारी दी गई है।

गर्भवती स्त्री की देखभाल के लिए किन-किन बातों का विशेष ध्यान देना आवश्यक हैं। प्रेगनेंसी टिप्स(Pregnancy Tips in Hindi)

Table of Contents

भोजन

गर्भिणी को अपने शरीर में पल रहे शिशु के शारीरिक वह मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखने के लिए अपने भोजन के प्रति सतर्क रहना अति आवश्यक है अतः उस का भोजन पौष्टिक हल्का शीघ्र पचने वाला व रुचि कारक होना चाहिए ध्यान रहे गर्भस्थ अपनी आहार संबंधित समस्त आवश्यकताएं माता के शरीर से ही पूरी करता है।

विश्राम एवं निंद्रा

गर्भवती स्त्री को साधारण स्त्रियों की अपेक्षा अधिक विश्राम की आवश्यकता होती है उसे रात में 8 घंटे तथा दोपहर में 2 घंटे विश्राम करना चाहिए थोड़ी सी थकावट होने पर उसे चारपाई पर लेट जाना चाहिए पैरों को थोड़ा ऊंचाई पर रखकर सोने से थकावट शीघ्र दूर होती है स्वच्छ व शुद्ध वायु में सोना अति लाभकारी होता है।

वस्त्र

गर्भवती स्त्री को ढीले आराम दे सुंदर वस्त्र धारण करने चाहिए तंग ब्लाउज, चोली, पेटिकोट, बिल्कुल नहीं पहनने चाहिए तंग कपड़ों से रक्त परिभ्रमण पर कुप्रभाव पड़ता है। परिणाम स्वरूप गर्भ भी प्रभावित होता है। साड़ी व पेटीकोट नाभि से थोड़ा ऊपर की ओर बांधना चाहिए| इनमें गांठ बहुत कसकर नहीं माननी चाहिए आराम में तीन चार महीने तक पेटिकोट पर पट्टी बांधने से भ्रूण ऊपर की ओर ही रहेगा तथा चलने फिरने में भी सुविधा रहती है।

जूता चप्पल

गर्भवती स्त्री को ऊंची एड़ी के जूते चप्पल आदि बिल्कुल नहीं पहनने चाहिए इस प्रकार के जूतों से गिरकर चोट लगने व गर्भपात की आशंका हो सकती है। तथा कमर में दर्द भी हो सकता है। अतः गर्भावस्था के समय नीची हुआ चप्पल एड़ी के जूते चप्पल ही पहनने चाहिए।

व्यायाम

गर्भवती स्त्री के लिए सुबह व शाम को टहलने अति आवश्यक है। शरीर को फुर्तीला साथ सचेस्ट  किरयारत रखने हेतु उसे थोड़ा बहुत परिश्रम अवश्य करना चाहिए। बयान से प्रसव काल में कष्ट बहुत कम हो जाता है। क्योंकि भीतरी क्रियाशील रहते हैं। गर्भवती स्त्री को अपने स्थित के अनुसार ही श्रम व व्यायाम करना चाहिए उसेनिम्मन बातो का ध्यान अवश्य रखना चाहिए।

  • ग्रह कार्यों को समान रूप से करते रहना चाहिए।
  • अधिक थकान नहीं होनी चाहिए।
  • भारी बोझ से बचना चाहिए आदि।

व्यक्तिगत स्वच्छता

साधारण अवस्था की अपेक्षा इस समय व्यक्तिगत स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

स्नान

गर्भवती स्त्री को प्रतिदिन स्नान द्वारा शरीर के प्रत्येक अंग को भली प्रकार स्वच्छ करके तौलिए से रगड़ कर पहुंचना चाहिए जिससे त्वचा के रोम-छिद्र खुले रहेंगे स्नान करना गर्भिणी के लिए अत्यंत लाभदायक है। इससे शरीर में फुर्ती रहेगी तथा मन को शांति वचन का अनुभव होगा।

स्तन

स्नान करते समय स्थान के मुखाग ओ भली प्रकार से साफ करना चाहिए जिससे स्थान से निकलने वाला द्रव्य पदार्थ उस पर ना जमने पाए चोली पहननी चाहिए जिससे स्थान भार नीचे की ओर ना हो।

दांत

गर्भवती स्त्री को प्रतिदिन अपने दांतो व नाखून को साफ करना चाहिए।

आतों की सफाई

गर्भवस्था में स्त्री को आंतो अर्थात पेट सफाई का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस अवस्था में नियमित रूप से शौच होना आवश्यक माना जाता है। इस अवस्था में कब्ज नहीं होनी चाहिए।

डॉक्टर से परामर्श तथा टीके लगवाना

गर्भावस्था की देखभाल में डॉक्टर से नियमित परामर्श भी सम्मिलित है चिकित्सक विभिन्न प्रकार की जांच करके बताते हैं। कि किसी प्रकार की कमी या संक्रमण की आशंका तो नहीं है प्रत्याशित  माता के टिटनेस से बचाव के लिए टीके लगाए जाते हैं। इससे अतिरिक्त आवश्यकता पड़ने पर आर्यन तथा मल्टीविटामिन के इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं। इसी प्रकार के संक्रमण हो जाने पर संक्रमण से मुक्त पाने के लिए भी टीके लगाए जाते हैं।

सहवास

गर्भावस्था में सहवास नहीं करना चाहिए इससे योनि में जीवाणु पहुंचने का डर रहता है। प्रसव के समय संक्रमण का होना घातक सिद्ध हो सकता है।

शुद्ध वायु एवं धूप का सेवन

उत्तम स्वास्थ्य के लिए शुद्ध वायु एवं सूर्य का प्रकाश अति आवश्यक है। शुद्ध वायु से ऑक्सीजन तथा सूर्य की किरणों से विटामिन डी की प्राप्ति होती है। जोकि भ्रूण के इस अस्थि-निर्माण में अति आवश्यक है।

मानसिक स्वास्थ्य (चिंतारहित दिनचर्या)

गर्भावस्था में चिंता रहने क्रोध करने तथा सदमे से माता एवं भावी शिशु के स्वास्थ्य पर अत्यंत हानिकारक प्रभाव पड़ता है। माता को दौरे पड़ सकते हैं, कमजोरी आ सकती है। तथा स्नायु संबंधित कोई भी विकार उत्पन्न हो सकता है| अत्याधिक सदमा तथा चिंता-क्लेश से गर्भपात हो सकता है गर्भवती स्त्री को अपनी दिनचर्या निम्न प्रकार बनानी चाहिए।

  • व्यर्थ में किसी बात पर क्रोध या चिंता ना करें।
  • सदमे से बचना चाहिए ईश्वर उपासना पर ध्यान देना।
  • चाहिए सुंदर फूल व चित्र कमरे में लगाने चाहिए।
  • सुगंधित वस्तुओं का प्रयोग करें।
  • परिवार शांति में वातावरण से पूर्ण हो।
  • अशुद्ध एवं स्वास्थ्य विचारों वाले व्यक्तियों से बचना चाहिए।
  • रात्रि में सोते समय मन में सुंदर सुंदर विचार करने चाहिए।

गर्भवती स्त्री का आहार किस प्रकार का होना चाहिए (What Should be The Diet of a Pregnat Woman in Hindi)

गर्भवती स्त्री को साधारण स्त्री की अपेक्षा अधिक संतुलित एवं पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है क्योंकि उसे गर्भस्थ शिशु का पालन भी करना होता है। भ्रूण के निर्माण हेतु गर्भिणी इनको इस समय पर्याप्त मात्रा में ऐसा पदार्थ मिलने चाहिए जिसमें प्रोटीन, खनिज, लवण, कैल्शियम, फास्फोरस, तथा लोहा, और विटामिन, डी हूं भोजन के तत्वों को स्वास्थ्य रक्षक कहा जाता है अतः उपयुक्त तत्वों से युक्त पदार्थों को भ्रूण के शरीर निर्माण तथा स्वास्थ्य सुरक्षा हेतु निश्चित और नियमित रूप से ग्रहण करना चाहिए उक्त बातों का ध्यान रखते हुए ग्रहणी स्त्री के भोजन में प्रतिदिन निम्नलिखित पोषक तथा समुचित मात्रा में अवश्य होना चाहिए।

प्रेगनेंसी टिप्स

गर्भवती महिला के लिए भोजन और पौष्टिक आहार (Food and Nutritious Diet For Pregnat Women In Hindi)

प्रोटीन

प्रोटीन शरीर की सोच में इकाई कोशिका की रचना वृद्धि व विकास करता है गर्भावस्था में स्त्री को सामान्य से 10 ग्राम अधिक प्रोटीन प्रतिदिन ग्रहण करना चाहिए अतः पहले महीने से ही गर्भवती स्त्री के भोजन में प्रोटीन की पर्याप्त वाले पदार्थ जैसे दूध पनीर अंडा मांस मछली सोयाबीन डाले बीच वाली फलियों आदि की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।

खनिज लवण और कैल्शियम

गर्भवती स्त्री के आहार में कैल्शियम की मात्रा भी साधारण अवस्था में अधिक होनी चाहिए गर्भ में स्थित शिशु  अपनी आवश्यकतानुसार कैल्शियम माता के शरीर से ग्रहण कर लेता है। विशेषज्ञों के अनुसार गड़बड़ी को अपने आहार में 500mg से 600mg  कैल्शियम की अतिरिक्त मात्रा लेनी चाहिए अतिरिक्त कैल्शियम के लिए गर्भिणी के भोजन में दूध पनीर रसदार फल बंधा गोभी गाजर तथा व बादाम को स्थान मिलना चाहिए।

आयरन

आर्यन शरीर वृद्धि तथा रक्त के लालगढ़ को में निर्मित हिमोग्लोबिन के लिए आवश्यक।  इसकी कमी से गर्भिणी मैं रक्त अल्पता उत्पन्न हो जाएगी जिससे शिशु का भी विकास भले बात ना हो सकेगा गर्भिणी को सामान्य से 10mg अधिक आयरन ग्रहण करना चाहिए आयरन की अतिरिक्त मात्रा ग्रहण करने के लिए गर्भवती स्त्री के आहार में हरी सब्जियां टमाटर आंवला अंडा से केला तथा नारंगी आज होनी चाहिए।

विटामिन

गर्भड़ी के भोजन में विटामिन डी प्रचुर मात्रा में होनी चाहिए या कैल्शियम वह फास्फोरस के साथ मिलकर दातों वासियों को दृढ़ता प्रदान करने में सहायक होता है। यदि गर्भावस्था में स्त्री के शरीर में विटामिन डी की कमी रहती है तो इसका प्रतिकूल प्रभाव स्त्री व भावी संतान दोनों पर ही पड़ता है। दूध मक्खन अंडे की जर्दी व मछली के तेल में विटामिन डी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

इसके अतिरिक्त सूर्य की किरणों से भी विटामिन डी की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त vitamin-e विशेष रूप से प्रजनन अंगों तथा गर्व सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक विटामिन है इसके अभाव में कभी-कभी गर्भ में ही शिशु की मृत्यु हो जाती है। अथवा प्रसव में बहुत कठिनाई होती है इसके साथ-साथ विटामिन ए बी तथा सी युक्त पदार्थों का भी सेवन करना चाहिए।

वसा एवं कार्बोहाइड्रेट्स

अधिक तले पदार्थों का सेवन वर्जित है। अतः इनका कम ही प्रयोग करना उत्तम है इसी प्रकार स्टार्च युक्त पदार्थ आलू चावल रोटी आदि समान रूप से लेनी चाहिए।

जल तथा रेशेयुक्त पदार्थ

कब्ज से बचने तथा रक्त-शुद्ध के लिए खूब जल व तरल पदार्थ का सेवन करना चाहिए तथा रेशेयुक्त पदार्थ जैसे छिलके, वाली दाल, भूषियुक्त आटा, छिलके सहित हरी सब्जी मूली तथा कच्चे फल को खूब खाने चाहिए।

गर्भावस्था के समय स्त्री के सामान्य कष्ट (Common Problems of Women During Pregnancy in Hindi)

गर्भवस्था के समय कुछ-न-कुछ कष्ट अवश्य होते रहते है इन कष्टों के प्रति विशेष चिंतित रहने की आवश्यकता नहीं है। क्यों कि ये स्वाभाविक होते है। और प्राकृतिक है, जो कुछ समय बाद अपने आप समाप्त हो जाते है। फिर भी यदि यह कष्ट का अधिक अनुभव महसूस होता है है। तो निश्चित रूप से डाक्टरी सलाह लेना बहोत आवश्यक है।

प्रेगनेंसी में होने वाले सामान्य परेशनियां (Common Complication In Pregnancy)

जीमिचलाना

प्रातःसमय गर्भवस्था के दौरान कभी-कभी लगभग दो-तीन माह तक गर्भवती स्त्री का जी मिचलाता है। इस परेशानी को दूर करने के लिए सुबह शीघ्र मजन करके अधिक दूध की एक कप चाय और दो बिस्कीट या थोड़े भुने हुए चने खाने से काफी लाभ होगा। अधिक देर खली पेट रहने से जी अधिक मिचलाएगा प्रत्येक बार खाने-पीने के बाद लौंग, इलाइची, पान मसाला आदि लेकर थोड़ी देर लेटना लाभदायक है। लेटकर जब उठे तो धीरे-धीरे उठना चाहिए, झटके से नहीं उठना चाहिए।

वमन (उल्टी)

कुछ गर्भवती महिलाओ को प्रायः भोजन के उपरान्त वमन वमन (उल्टी) हो जाती है। अतः एक बार में थोड़ा भोजन ले, भोजन के समय पानी ज्यादा पिए और जल्दी-जल्दी भोजन न करे काम करने के बाद थोड़ा आराम करने के बाद भोजन करे। भोजन करने के बाद खुली हवा में टहलना चाहिए, जिससे भोजन के पचने में सुविधा हो।

कलेजे में जलन

रात में देर से भोजन करने पर या बहुत देर तक बैठे रहने से किसी-किसी महिला के कलेजे में जलन होने लगती है। ऐसा इस कारण होता है क्योंकि गर्भ में भ्रूण बढ़ने के कारण, भोजन के पश्चात् अमाशय को फैलने व फूलने का प्रयाप्त स्थान नहीं मिल पाता अतः गर्भकाल में स्त्री को शीघ्र पचने वाला भोजन लेना चाहिए। तली-भुनी गरिष्ठ वस्तुएँ नहीं खानी चाहिए तथा भोजन मात्रा में भी कम ही खाना चाहिए। यदि जलन कम न हो तो नीबू का पानी लेने से लाभ होगा।

कब्ज

गर्भवस्था में कब्ज होना साधारण बात है। कब्ज रहने से गैस उत्पन्न होने लगती है। जिससे सर दर्द, भूख न लगना, अफारा, नींद न आना, सुस्ती आदि हो जाते है। कब्ज न हो इसके लिए गर्भवती स्त्री को अपने भोजन में हरी सब्जी, फल, कच्चा चना, व भूसी-युक्त आटा का प्रयोग करते रहना चाहिए। कब्ज होने पर दूध मुनक्का उबालकर

अथवा त्रिफला का चूर्ण एक चम्मच गर्म दूध के साथ रात्रि को सोने से पहले लेना चाहिए। पानी ज्यादा पीना चाहिए तथा सुबह कुछ देर टहलना चाहिए। इतना पर भी यदि कब्ज रहे तो डाक्टरी सलाह लेना चाहिए।

मांसपेशियों में ऐंठन

शरीर में कैल्सियम की कमी के कारण मांशपेशियों में ऐंठन व पीड़ा होने लगती है।इसके दूर करने के कैल्सियम व विटामिन A व D का प्रयोग करना चाहिए। पान खाने से कैल्सियम की कमी दूर हो जाती है।

टाँगो में सूजन

गर्भवस्था में टाँगो में सूजन आना साधारण बात नहीं है। इसके लिए डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए तथा अधिक देर तक खड़ा नहीं रहना चाहिए।

नींद में कमी

सातवें-आठवें माह में भ्रूण के काफी विकसित होने के कारण गर्भिणी को आंतरिक परेशानियां तथा लेटने में असुविधा के कारण नींद कम आती है। अतः रात्रि में हल्का भोजन करना चाहिए। भोजन सोने से एक घण्टे पहले कर लेना चाहिए। भोजन करने के पश्चात् टहलने से आराम मिलता है।

पीठ में दर्द का होना

भ्रूण के विकाश, उसके आकर व भार में वृद्धि से मांशपेशियां में खिचाव होता है। जिससे पीठ पीठ में दर्द होने लगता है। आरामदायक बिस्तर पर विश्राम करने से काफी लाभ मिलता है।

दाँतों की कमजोरी

गर्भावस्था में कभी-कभी दाँतों की कमजोरी की समस्या का भी सामना करना पड़ जाता है। यह समस्या उन महिला को महसूस होती है जो किसी कारण वश संतुलित एवं पौष्टिक आहार ग्रहण नहीं कर पाती। परेशानी से बचने के लिए स्त्री को आहार में प्रोटीन, कैल्सियम तथा लौह-खनिज की सामान्य से अधिक मात्रा ग्रहण करनी चाहिए।

कुछ गंभीर रोग

यदि गर्भवस्था के समय इन सब कष्टों के अतरिक्त जैसे- ब्लड प्रेशर, रक्त-स्त्राव बवासीर अथवा अन्य कोई परेशानी। जैसे पेट पे पीड़ा, भ्रूण की हरकत बंद होना, मूत्र सम्बन्धी कोई परेशानी हो तो तुरंत कुशल महिला चिकित्सक को दिखाकर आवश्यक उपचार कराना चाहिए।

गर्भवती महिला के लक्षण (Symptoms Of Pregnant Woman)

गर्भधारण करने पर स्त्री को जिन लक्षणो की जानकारी प्रयाप्त होती है। उन्हें गर्भधारण करने आत्मगत लक्षण कहते है। गर्भधारण करने के मुख्य आत्मगत कुछ इस प्रकार है।

प्रेगनेंसी टिप्स

  • मासिक धर्म का बंद होना।
  • जी मिचलाना।
  • बार-बार पेशाब का आना।
  • मुँह में लार का अधिक आना।
  • योनि-स्त्राव अधिक होना।
  • पेट में हरकत अनुभव होना।

मासिक धर्म का बंद होना

मासिक धर्म का बंद होना गर्भधारण के बाद नियमित मासिक रक्त-स्त्राव बंद हो जाता है। कभी-कभी किसी खराबी के कारण भी मासिक रक्त-स्त्राव नहीं होता है। लेकिन लगातार तीन महीना तक रक्त-स्त्राव न होने पर निश्चित रूप से स्त्री को गर्भवती समझ लेना चाहिए।

जी मिचलाना

गर्भधारण के लगभग दो माह पश्चात् अधिकतर स्त्रियों का जी मिचलाने लगता है। कभी-कभी सुखी उबकाई आती है, लेकिन कभी उल्टी भी हो जाती है। ऐसी स्थिति 3-4 माह तक रहती है। कुछ महिलाओं का पुरे नौ महीने तक जी मिचलाना जारी रहता है। यह बहुत विश्वसनीय लक्षण नहीं है।

बार बार पेशाब का आना

गर्भधारण करने के उपरान्त गर्भवती महिला को बार-बार पेशाब करना पड़ता है। भ्रूण के निर्माण के कारण गर्भाशय का आकर बढ़ने लगता है। तथा बढ़ते हुए गर्भाशय का दबाव मूत्राशय पर पड़ता है, इससे गर्भवती महिला को बार-बार पेशाब आता है। अतः इस लक्षण को भी गर्भधारण का लक्षण कहते है।

मुँह में लार अधिक आना

गर्भधारण करने का एक अनुभवजन्य लक्षण मुँह में लार का अधिक आना भी है, लेकिन इस लक्षण को गर्भधारण का अनिवार्य लक्षण नहीं माना जा सकता।

योनि-स्त्राव का अधिक हो जाना

गर्भधारण की अवस्था में स्वभाविक रूप से होने वाले योनि-स्त्राव की मात्रा बढ़ जाती है।

पेट में हरकत अनुभव होना

गर्भधारण के लगभग चार माह के बाद स्त्री को पेट में कुछ हलचल होती हुई महसूस होती है। एक से अधिक बच्चे यदि गर्भ में हो तो यह हलचल स्वाभाविक रूप से अधिक होती है।

गर्भधारण करने के शारीरक लक्षण (Physical Signs of Pregnancy in Hindi)

गर्भधारण करने के बाद स्त्री के शरीर में बाहरी रूप से भी कुछ विशेष लक्षण दिखाई देने लगते है जो इस प्रकार है।

चहेरा

गर्भवती स्त्रियों का चेहरा सुस्त लगने लगता है तथा आँखों के नीचे व ऊपर पलकों का रंग काला सा हो जाता है।

पेट

गर्भधारण के दो माह बाद गर्भवती स्त्रियों का पेट अधिक चपटा हो जाता है। गर्भ बढ़ने के साथ-साथ पेट की स्थिति व आकर भी बढ़ने लगता है।

  • गर्भवती स्त्री की कोख अण्डाकार हो जाती है।
  • स्टेथस्कोप की सहायता से गर्भ की वाणी को सुना जा सकता है।

स्तन

गर्भ होने पर स्तन का आकर बढ़ता है तथा ऊके चारो ओर का भाग फ़ैल जाता है। स्तन मुख के आस-पास का भाग कुछ काला-सा हो जाता है। छठे माह से स्तन के मुख से सफेद रंग का पतले दूध-सा द्रव निकलने लगता है।

गर्भवस्था में गुर्दे का संक्रमण (Kidney Infection in Pregnancy in Hindi)

गर्भवस्था की एक गंभीर समस्या गुर्दे का संक्रमण भी है। यह समस्या यदि गम्भीर हो जाये तो गर्भवती महिला तथा गर्भस्थ शिशु दोनों को ही खतरा हो जाता है है। वास्तव में गर्भवस्था में गर्भस्थ शिशु तथा स्वयं गर्भवती महिला के शरीर के विजातीय तत्वों के विसर्जन का कार्य महिला के गुर्दे द्वारा ही होता है। गर्भवस्था में विभिन्न कारणों से महिला को सामान्य से काफी अधिक मात्रा में मूत्र विसर्जन करना पड़ता है, इसके अतिरिक्त इस अवस्था में मूत्र थैली तथा गुर्दे से मूत्र थैली तक की नलिका में कुछ परिवर्तन आ जाते है। इन परिवर्तनों तथा अधिक कार्य करने से गर्भवस्था में गुर्दो के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।

गर्भवस्था में गुर्दे का संक्रमण हो जाने पर महिला को तेज़ बुखार होने लगता है, ठण्ड लगती है तथा कमर में काफी दर्द होता है | पेशाब करते समय कष्ट होता है, जलन तथा दर्द होता है। इन लक्षणो के प्रकट होते ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए तथा उचित उपचार होना चाहिए। गर्भवती महिला को पूर्ण विश्राम करना चाहिए तथा अधिक मात्रा में पानी पीना चाहिए।

गर्भपात और अपरिपक्व जन्म में अंतर (Difference Between Miscarrage and Preterm Birth in Hindi)

गर्भपात तथा अपरिपक्व जन्म दोनों गर्भवस्था की गम्भीर समस्याएँ है तथा इन दोनों का प्रभाव गर्भवती स्त्री तथा गर्भस्थ शिशु पर पड़ता है | गर्भपात की समस्या सामान्य रूप से गर्भावस्था के प्रथम छः माह के अंदर कभी भी उत्पन्न हो सकती है जबकि अपरिपक्व जन्म की समस्या गर्भवस्था के सातवें या आठवें माह में उत्पन्न होती है। अपरिपक्व जन्म की अवस्था में बच्चे का जन्म सामान्य भार 3-4 किग्राम से कम होता है। गर्भपात की स्थिति में अनिवार्य रूप से गर्भस्य शिशु की मृत्यु हो जाती है, जबकि अपरिपक्व जन्म की स्थिति में समुचित प्रयास द्वारा जन्म लेने वाले शिशु को बचा लिया जाता है।

गर्भवती स्त्री के भोजन के सम्बन्ध में ध्यान रखने योग्य बाते (Things to Be Kept in Mind Regarding the Diet of Pregnant Woman in Hindi)

गर्भवती स्त्री के स्वास्थ तथा गर्भस्य शिशु के सुचारु विकास के लिए गर्भवती स्त्री के भोजन के सम्बन्ध में अग्रलिखित बातो को अनिवार्य रूप से ध्यान में रखना चाहिए।

  • रात में सोने से कम-से-कम 2 घण्टे पहले भोजन करना चाहिए और उसके बाद कुछ नहीं खाना चाहिए।
  • एक बार में भरपेट भोजन न करके तीन या चार घण्टे के बाद थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए। भोजन सही समय पर ही करना चाहिए।
  • भोजन के समय किसी प्रकार की चिंता, परेशानी,गुस्सा अथवा उत्तेजना से बचना चाहिए।
  • भोजन हल्का, सुपाच्य, रुचिकर और पौष्टिक हो।
  • भोजन के साथ पानी न पीकर भोजन के आधा घण्टे बाद पीना चाहिए।
  • यदि सामान्य आहार से सभी विटामिन्स एवं खनिज समुचित मात्रा में उपलब्ध न हो तो इसकी पूर्ति के लिए अलग से गोलियाँ ली जानी चाहिए।
  • गर्भावस्था में अंतिम 2-3 माह के लिए नमक खाना कम कर देने से गर्भिणी के स्वास्थ को लाभ पहुँचता है।
  • यदि डॉक्टर ने कोई विशेष आदेश दिया हो तो उसका ठीक से पालन करना चाहिए।
  • गर्भिणी के भोजन में 15% प्रोटीन, 25% चर्बी तथा 16% स्टार्च व शर्करा होनी चाहिए। इनके अतिरिक्त विटामिन और खनिज लवण की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए।
  • इसी प्रकार पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व युक्त भोजन लेते रहने से गर्भस्थ शिशु की उचित वृद्धि तथा शारीरिक व मानशिक विकास होता है। तथा माता का स्वास्थ भी ठीक रहता है।

और पढ़े-नवजात शिशु की देखभाल कैसे करे


FAQ

Qus-दिन में संबंध बनाने से क्या होता है?

Ans-दिन में सम्बन्ध बनाने से रक्तचाप के प्रॉब्लम दूर हो जाती है। क्यों की सेक्स के दौरान खून का दौरा सामान्य रूप से चलने लगता है।

Qus-प्रेगनेंट लेडी को क्या क्या ध्यान रखना चाहिए?

Ans-रात में सोने से कम-से-कम 2 घण्टे पहले भोजन करना चाहिए और उसके बाद कुछ नहीं खाना चाहिए। एक बार में भरपेट भोजन न करके तीन या चार घण्टे के बाद थोड़ा-थोड़ा खाना चाहिए भोजन सही समय पर ही करना चाहिए भोजन के समय किसी प्रकार की चिंता, परेशानी,गुस्सा अथवा उत्तेजना से बचना चाहिए भोजन हल्का, सुपाच्य, रुचिकर और पौष्टिक हो। भोजन के साथ पानी न पीकर भोजन के आधा घण्टे बाद पीना चाहिए।यदि सामान्य आहार से सभी विटामिन्स एवं खनिज समुचित मात्रा में उपलब्ध न हो तो इसकी पूर्ति के लिए अलग से गोलियाँ ली जानी चाहिए।

गर्भावस्था में अंतिम 2-3 माह के लिए नमक खाना कम कर देने से गर्भिणी के स्वास्थ को लाभ पहुँचता है। यदि डॉक्टर ने कोई विशेष आदेश दिया हो तो उसका ठीक से पालन करना चाहिए। गर्भिणी के भोजन में 15% प्रोटीन, 25% चर्बी तथा 16% स्टार्च व शर्करा होनी चाहिए। इनके अतिरिक्त विटामिन और खनिज लवण की प्रचुर मात्रा होनी चाहिए। इसी प्रकार पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व युक्त भोजन लेते रहने से गर्भस्थ शिशु की उचित वृद्धि तथा शारीरिक व मानशिक विकास होता है तथा माता का स्वास्थ भी ठीक रहता है।

Qus-मां के पेट में बच्चा कौन से महीने में घूमता है?

Ans-जब बच्चा 12 हफ्ते का हो जाता है। तब से आप के पेट में बच्चे का हलचल शुरू हो जाती है लेकिन इस टाइम भी बच्चा काफी छोटा होता है और इस समय आपको बहुत मामूली सा ही महसूस हो सकता है। लेकिन जब बच्चा बीस हफ्ते का हो जाता है तब आप को साफ साफ यह हलचल महसूस होने लगती है।

Qus-गर्भवती महिला का ब्लड कितना होना चाहिए?

Ans-गर्भवती महिला को कम से कम 12 ग्राम खून होना चाहिए लेकिन हीमोग्लोबिन जाँच के दौरान महिला में 7 से 8 ग्राम खून पाया जा रहा है। यही सब से बड़ा कारण है जो डिलीवरी सर्जरी से किया जा रहा है। गर्भवती महिला को खून की कमी होने के कारण गर्भ में बच्चे का सही प्रकार से विकास नहीं हो पाता।

Qus-गर्भवती महिला को खून की कमी हो तो क्या करें?

Ans- गर्भवती स्त्री को साधारण स्त्री की अपेक्षा अधिक संतुलित एवं पौष्टिक आहार की आवश्यकता होती है क्योंकि उसे गर्भस्थ शिशु का पालन भी करना होता है। भ्रूण के निर्माण हेतु गर्भिणी इनको इस समय पर्याप्त मात्रा में ऐसा पदार्थ मिलने चाहिए जिसमें प्रोटीन, खनिज, लवण, कैल्शियम, फास्फोरस, तथा लोहा, और विटामिन, डी हूं भोजन के तत्वों को स्वास्थ्य रक्षक कहा जाता है। अतः उपयुक्त तत्वों से युक्त पदार्थों को भ्रूण के शरीर निर्माण तथा स्वास्थ्य सुरक्षा हेतु निश्चित और नियमित रूप से ग्रहण करना चाहिए उक्त बातों का ध्यान रखते हुए ग्रहणी स्त्री के भोजन में प्रतिदिन निम्नलिखित पोषक तथा समुचित मात्रा में अवश्य होना चाहिए।

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