नवजात शिशु गर्भ में भोजन व् श्वास लेने के लिए माता पर निर्भर रहता है। लेकिन बाहरी वातावरण में आने पर माता के शरीर की अपेक्षा बाहर का तापमान भी अलग होता है। तथा उसके शरीर से वायु का स्पर्श होने पर शरीर में उत्तेजना उत्पन्न होने लगती है। इसी उत्तेजना से उसे स्वयं स्वास क्रिया में सहायता मिलती है। इस प्रकार श्वास क्रिया शुरू होते ही शिशु बाहरी वातावरण की भिन्नता के कारण रोना शुरू कर देता है शिशु का जन्म के उपरांत रोना इस बात का लक्षण है।
की उसके फेफड़े व मस्तिष्क ठीक प्रकार से कार्य कर रहे है। अर्थात वह स्वस्थ है। यदि नवजात शिशु स्वयं नहीं रोता तो उसे हलके हाथ से थपथपाकर रुलाया जाता है। जिससे की उसकी श्वसन क्रिया आरम्भ हो जाए और बच्चा सुरक्षित रहे।
नाल का बाँधना (Tying Of The Placenta)
जन्म से पहले गर्भ में शिशु एक नली से माता के शरीर से जुड़ा रहता है। जिसे गर्भ नाल कहते है। इसकी लम्बाई 45 से 60 सेमी तक होती है। गर्भ में शिशु माता के रक्त से पोषक तत्व व ऑक्सीजन इसी नाल के दवारा लेता है। जन्म के उपरांत इसकी आवश्यकता नहीं होती क्योकि शिशु का परिवहन तंत्र क्रियाशील होकर बाहरी संसार से पोषक तत्वों की प्राप्ति करता रहता है। इस नाल को शिशु जन्म के उपरांत 10 सेमी की दुरी पर 6-7 सेमी बीच में छोड़कर दो स्थानों पर कसकर बाँध कर नाल को काट दिया जाता है।
इस प्रकार शिशु माता के शरीर से अलग हो जाता है। कटे हुए स्थान पर सिबाज़ोल का पाउडर लगा देना चाहिए कुछ दिनों के उपरांत नाल का टुकड़ा सुखकर गिर जाता है। और नाल जुड़ने का स्थान नाभि का रूप धारण कर लेता है। गर्भनाल को काटने के लिए अच्छी प्रकार से निःसंक्रमित की गई कैची को ही इस्तेमाल करना चाहिए।
नवजात शिशु का पहला स्नान (Baby’s First Bath)
शिशु के पुरे शरीर पर जन्म के समय एक सफ़ेद रंग का लिसलिसा पदार्थ जमा रहता है यह गर्भ में शिशु के शरीर के सुरक्षा करता है। स्वच्छ रुई या कपडे से इस पदार्थ को धीरे-धीरे छुड़ाकर जैतून तेल की मालिस करने के बाद शिशु को बेबी सोप व गुनगुने पानी से नहलाना चाहिए पहला स्नानं टब आदि में बैठाकर नहीं करना चाहिए क्योकि नाभि गीली होकर पक जाने की आशंका रहती है। स्नान के बाद शिशु के शरीर को नर्म एवं स्वच्छ तौलिया से सूखा देना चाहिए। स्नान कराते समय शिशु के विभिन्न अंगो के स्वच्छता पर विशेष ध्यान देना चाहिए उसके अंगो को निम्न प्रकार से स्वच्छ करना चाहिए।
नाक (Nose)
स्नान कराते समय शिशु की नाक को कपडे की पतली बत्ती या रुई की बत्ती से साफ कर देना चाहिए।
कान (Ear)
एक मुलायम कपडे की बत्ती कान में घुमानी चाहिए जिसमे शिशु के कान स्वच्छ हो जायँगे।
गला (Neck)
शिशु के गले में श्लेष्मा एकत्रित रहता है इसलिए अनुगली पर साफ कपडा लपेटकर तथा बोरिक लोशन में भिगोकर गले में घुमाने से गला साफ हो जाता है।
आँख (Eye)
शिशु की आँख की और विशेष ध्यान देना की आवश्यकता होती है। इस समय जरा सी असावधानी शिशु की आँख को नेत्र-विहीन बना सकती है। पहला स्नान के समय ही डॉक्टर शिशु की आँखों में एक-एक बूँद (Argyrol) की डाल देते है। जिससे नेत्रों का मेल बाहर निकल जाता है।
मल मूत्रांग (Stool Urethra)
शिशु के मल-मूत्रांग को स्वच्छ करना भी बहुत आयश्यक है। कन्या शिशु के गुप्तांगो को बोरिक लोशन में भिगोकर रुई से अच्छी तरह से साफ कर देना चाहिए। उसके बाद समस्त अंगो की स्वच्छता के बाद शिशु के कोमल शरीर को मुलायम तौलिया से पोछकर उसकी बगल जांघ व गले आदि में बेबी पाउडर लगा देना चाहिए।
कपडा पहनाना और नैपकिन बाँधना (Dressing And Napkin Folding)
शुरवाती में शिशु को मौसम के अनुसार सूती व ऊनी, ढीले-ढाले कपडा पहनाने चाहिए कपड़ा पहनाकर बच्चे को नैपकिन भी बाँधना चाहिए नैपकिन के अंदर मुलायम स्वच्छ कपड़े को गद्दी बनाकर रख देना चाहिए नैपकिन अधिक कसकर नहीं बाँधना चाहिए।
नवजात शिशु को सुलाना (Put The Newborn To Sleep)
आरम्भ में शिशु दिन भर में 20-22 घण्टे सोता है। केवल दूध पीने मल मूत्र त्यागने अथवा अन्य किसी पीड़ा के कारण ही वह रोता है। शिशु को पहले से तैयार किए गए पालने में सुला देना चाहिए पालने पर नर्म गद्दी पर रबर या पलास्टिक बिछा देना चाहिए। जिससे शिशु के मल मूत्र त्यागने पर गद्दी गन्दी नहीं होती एक मुलायम कपडे की कई तह बनाकर शिशु के सिर के नीचे तकिये की तरह लगा देना चाहिए शिशु का मुँह खुला रखकर शेष शरीर को चादर से ढक देना चाहिए शिशु को प्रारम्भ में सदैव माता से अलग ही सुलाना चाहिए।
नवजात शिशु का मल मूत्र त्याग (Newborn Baby Poop)
आरम्भ में नवजात शिशु काला व चिपचिपा-सा मल त्याग करता है। इसके बाद वह पीले व गाढ़े रंग मल त्याग करता है इसके अलावा अगर शिशु किसी और रंग का मल त्याग करता है। तो चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए आरम्भ में शिशु का प्रतदिन दो तीन बार मल त्याग करना आवश्यक है।जन्म के तुरंत बाद नवजात शिशु मूत्र त्याग करता है। यदि बारह घंटे तक शिशु मूत्र त्याग न करे तो उसका उपचार करना चाहिए।
नवजात शिशु का पहला आहार (Baby’s First Food)
जब तक नवजात शिशु को माता का दूध न मिले तब तक जन्म के चार अथवा पांच घण्टे पश्चात शहद या ग्लूकोज मिलाकर चम्मच की सहायता से पिलाना चाहिए इस मिश्रण को चम्मच की जगह रुई से भी पिलाया जा सकता है। रुई की बत्ती का एक सिरा इस मिश्रण में तथा दूसरा सिरा बच्चे के मुँह में लगा देना चाहिए जिससे वह अपनी आवश्यकता अनुसार मिश्रण को चूस लेगा सामान्य रूप से लगभग आठ घण्टे के पश्चात् माँ का दूध शिशु को दिया जाता है।
आरम्भ में माता के स्तन से पीले रंग का प्रोटीनयुक्त तरल पदार्थ निकलता है इसे कालस्ट्रम (खीस) कहते है। यह शिशु की पाचन शक्ति को क्रियाशील बनाने तथा ठीक से मल त्याग करने में सहायक होता है। इस पदार्थ से मल ठीक प्रकार हो जाता है तथा दूध को पचाने की सामथर्य भी शिशु में आ जाती है अतः नवजात शिशु को इस प्रारम्भिक दूध या कालस्ट्रम का सेवन अवश्य कराना चाहिए।
नवजात शिशु को स्तनपान कराना (Breastfeeding A Newborn)
स्तनपान कराना स्वाभाविक तथा प्राकृतिक देन है। माता का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है शिशु को स्तनपान कराने से पहले स्तनों और हाथों को ठीक से धो लेना चाहिए स्तनपान कराते समय बच्चे की श्वसन क्रिया का भी ध्यान रखना चाहिए जिससे नवजात शिशु घुटन महसूस न करे इसलिए स्तन मुख को हाथ से पीछे की और सम्भाले रहना चाहिए तथा एक बार में इतनी देर स्तनपान कराया जाए जिससे उसका पेट भर जाए तीसरे चौथे दिनसे ही 4-4 घण्टे के अंतर पर दूध पिलाना चाहिए।
बच्चे के पेट में कभी-कभी दूध के साथ हवा भी चली जाती है। इस लिए दूध पिलाने के बाद उसे कंधे से लगाकर नीचे से ऊपर की और हल्के हाथ से सहलाना चाहिए इसमें बच्चे को डकार आ जाएगी और उसका पेट ठीक हो जाएगा।
बच्चे कभी रोने पर यह समझकर दूध नहीं पिलाना चाहिए की बच्चा भूखा है बच्चे के रोने का कारण पता लगाने का प्रयास करना चाहिए और उसे दूर करना चाहिए। सामान्यतया शिशु 15-20 मिनट में पेट भरकर दूध पी लेता है। कुछ अधिक स्वस्थ बच्चे जल्दी ही पेट भर लेते है। कुछ कमजोर बच्चे जल्दी से दूध नहीं पी पाते और वे थक कर दूध पीना छोड़ देते है और भूखे ही रह जाते है। यदि शिशु को माता के स्तनों से पर्याप्त दूध न मिले तो उसे ऊपरी दूध दिये जाने का प्रबंध करना चाहिए।
अन्य बाते (Other Things)
नवजात शिशु को गोद में लेने तथा बिस्तर में लपेटकर बैठते समय भी अति सावधानी बरतनी चाहिए। यदि शिशु को कन्धे या बाहों के सहारे उठाया जाए तो हसली उतर जाने का भय रहता है यदि शिशु शारीरिक विकास में किसी प्रकार का व्यधान उत्पन्न हो रहा है तथा यह लग रहा हो की बच्चे का विकास समुचित ढंग से नहीं हो पा रहा है तो तुरंत चिकित्सक को दिखाकर उचित उपचार कराना चाहिए।
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