तपेदिक या क्षय रोग (Tuberculosis) अत्यन्त दुष्कर विश्वव्यापी संक्रामक रोग है। जो आधुनिक वैज्ञानिक अनुसन्धानो के बाजवूद उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहा है। अब से कुछ काल पूर्व तक यह माना जाता था की एक बार लगने के बाद जीवन पर्यन्त यह रोगी का पीछा नहीं छोड़ता केवल मरणोपरांत ही जाता है। इस रोग को (Captain of Death) कहते है। इस रोग में मनुष्य के शरीर का शनै-शनै क्षय होता रहता है। और इसमें घुल-घुल कर रोगी मनुष्य अन्ततोगत्वा मृत्यु की कराल क्रोड में शरण लेता है। इसी कारण इसे क्षय रोग भी कहते है। चिकित्सा विज्ञानं के अनुसंधानों एवं सुविधाओं के वृद्धि के परिणाम स्वरुप अब इस रोग का सफल उपचार सम्भव हो गया है।
क्षय टीबी सफल उपचार करने के लिए सबसे पहले आपको जानकारी होना चाहिए क्षय टीबी क्या है। और इसके लक्षण क्या-क्या होते है आइए इन सभी बातो के साथ-साथ क्षय टीबी इलाज के बारे में भी जानते है।
क्षय टीबी के विभिन्न रूप
इस रोग के कई रूप है फेफड़ो के तपेदिक, आंतो की तपेदिक,अस्थियो तपेदिक, तथा ग्रन्थियों की तपेदिक, आदि इनमे सर्वाधिक प्रचलित फेफड़ो की तपेदिक है जिसे पल्मोनरी टीबी (Pulmonary T.B) कहते है।
क्षय रोग फैलने का कारण
इस रोग का जीवाणु (Tubercle Bacillus) ट्यूबरकिल बेसिलस कहलाता है इसका आकार मुड़े हुए दण्ड के समान होता है। ये जीवाणु नम और अँधेरी जगहों में बहुत दिन तक जीवित रह सकते है। किन्तु धुप लगने से ये तुरंत नष्ट हो जाते है। साधारण यह रोग वायु या श्वास द्वारा ही फैलता है रोगी के जूठे बर्तन जूठे सिगरेट हुक्के उसके वस्त्रो और बर्तनो में भी रोग के कीटाणु आकर रोग फैला देते है।
मक्खियों भी इस रोग के जीवाणुओं को अपने साथ उड़ाकर ले जाती है। और स्वस्थ व्यक्ति के भोजन को दूषित कर इस रोग को फैला देती है। तंग स्थानों व बस्तियों जहाँ प्रकाश की उचित मात्रा नहीं पहुँचती में रहने वाले व्यक्ति शीघ्रता से इस बीमारी के शिकार बन जाते है इसके अतिरिक्त निर्धनता परदा-प्रथा , बाल विवाह अपौष्टिक भोजन और वंश परम्परा भी इस रोग के फैलने में सहायक होते है। सड़को पर पत्थर तोड़ने वाले मजदूरों चमड़े व टिन का कार्य करने वाले मजदूरों तथा भरपेट भोजन न प्राप्त कर सकने वाले व्यक्तियों को भी यह रोग शीघ्रता से ग्रस्त कर देता है। बहुत अधिक मानसिक क्लेशों से व्याप्त रहने तथा मादक पदार्थो द्रव्यों का अत्यधिक सेवन करने से भी यह रोग जन्म लेता है गायों के यह रोग शीघ्रता से लगता है तथा इस रोग से ग्रस्त गायों का दूध पीने से भी यह रोग हो सकता है।
उदभवन काल- इस रोग के जीवाणु शरीर में पहुंचकर धीरे-धीरे बढ़ते हुए अपना प्रभाव जमाते है। रोग के काफी बढ़ जाने पर ही इसका पता लगता है। इस प्रकार इस रोग का उदभवन कई माह से कुछ वर्ष तक ही हो सकता है।
क्षय रोग होने के लक्षण
शुरवाती दौर में शरीर हर समय हल्का बुखार रहता है। शरीर के अंग शिथिल रहते है हलकी खासी रहती है। रोगी का भार धीरे-धीरे कम हो जाता है और भूख कम लगती है किसी शारीरिक अथवा मानशिक कार्य को करने से अत्यधिक थकान हो जाती है। रोगी को हर समय आलस्य का अनुभव होता है। कभी-कभी मुख के बलगम के साथ रक्त भी आ जाता है। फ़ेफ़डो का (X-Ray) चित्र स्पष्ट रूप से रोग का प्रभाव बताता है। अस्थियो के तपेदिक में रोगी की अस्थियां निर्जीव होने लगती है। तथा उनकी वृद्धि रुक जाती है आँतो के तपेदिक में आरम्भ में दस्त बहुत होते है रोग काफी बढ़ जाने पर ही पहचान में आता है।
क्षय टीबी अक्सर अधिक उम्र वाले वृद्ध लोगो में होता है। या फिर बहुत ही कम उम्र वाले बच्चो में होता है व्यस्क और बच्चो लोगो में क्षय टीबी के ये लक्षण दिखाई देते है।
- बच्चो में त्वचा बहुत नाजुक होने के कारण त्वचा का इन्फेक्शन होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
- क्षय टीबी में बच्चो को भूख नहीं लगती उनकी खाने में रूचि नहीं रहती इस लिए बच्चो का वजन घटता जाता है।
- क्षय टीबी में बच्चे थोड़ा चलने और खेलने में भी वह बहुत जल्दी थक जाते है। और बुखार खासी रहने के कारण बच्चा सुस्त रहने लगता है।
- क्षय टीबी के कीटाणु बच्चों के फेफड़ो से शरीर के अन्य अंगो में बहुत जल्दी पहुंच जाते है। इसी कारण बच्चो में हल्का बुखार बना रहता है। रात को सोते समय पसीना भी आने लगता है।
- क्षय टीबी रोग में शुरवात में सुखी खासी आना खासी का लगातार बने रहना बाद में खासी के साथ रक्त भी निकलने लगता है। यह मुख्य लक्षण।
आमतौर पर क्षय टीबी के रोग में ये लक्षण दिखाई देते है।
- दस्त आना।
- पेट में दर्द।
- पीठ में अकड़न।
- लगातार वजन घटना।
- शरीर के जोड़ जोड़ में दर्द।
- भूख न लगना और भोजन के प्रति अरुचि।
- साँस फूलना।
- साँस लेने के समय छाती में दर्द होना।
- रात में पसीना आना।
- बुखार आना।
- खासी के साथ बलगम में रक्त आना।
- बिना काम किये हुये थकान होना।
क्षय टीबी रोग के उपचार
- इस रोग वाले व्यक्ति को तुरंत किसी क्षय चिकित्सालय (B.Sanatorium) भेजना चाहिए लेकिन यदि रोगी को घर में ही रखना पड़े तो उसके सम्पर्क से दूर रहना चाहिए।
- रोगी को शुद्ध वायु तथा धुप युक्त कमरे में रखना चाहिए उसके खाने पीने के बर्तन पृथक होने चाहिए रोगी के परिचारकों को अपना मुँह तथा नाक ढककर रोगी के पास जाना चाहिए।
- रोगी के आसपास का वातावरण बिल्कूल स्वच्छ रखना चाहिए उसका थूक बलगम आदि ऐसे बर्तन में पड़ना चाहिए जो निःसंक्रामक विलयन से भरा हुवा हो उसके कपडों को भी निःसंक्रामको से धोना चाहिए।
- रोगी को C.G का टीका लगवाना चाहिए।
- रोगी को शुद्ध एवं नियमित जीवन व्यतीत करते हुये ताजे फल तथा उत्तम स्वास्थप्रद भोजन देना चाहिए।
क्षय टीबी रोग के घरेलू उपचार
तुलसी के पत्ते- तुलसी के 11 पत्ते थोड़ी सी हींग और जीरा को एक गिलास पानी में डाले और इसमें एक नीबू निचोड़कर दिन में तीन बार पिलाए। यह क्षय टीबी रोग में लाभ पहुंचाता है।
काली मिर्च- तुलसी के पांच पत्तियों को पीसकर पांच काली मिर्च के दाने मिलाकर शहद में मिलाकर चाटे, घी के साथ दस काली मिर्च को लेकर दोनों फ्राई करे इसमें एक चुटकी हींग डालकर मिलाकर रख ले इसको तीन भाग में बाटकर दिन में तीन बार रोगी को दे।
लहसुन- लहसुन की दो काली सुबह खाकर ताजा पानी पिए इससे क्षय टीबी में बहुत लाभ होता है। लहसुन में क्षय टीबी के बैक्टीरिया को ख़त्म करने में मदद करता है इसमें एलीसिन और एजोइन भी होता है। जो बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकता है। एक कप दूध में एक चम्मच पिसा हुवा लहसुन को मिला दे और इसमें चारकप पानी डालकर उबाले जब दूध एक चौथाई रह जाए तब इसे रोगी को पिलाए।
सहजन- रोज सहजन के पत्तियो को उबालकर इसका सेवन करे या फिर इसकी सब्जी भी बनाकर खा सकते है इसमें संक्रमण से जल्दी राहत दिलाता है।
आंवला- आंवले की बीज से रस निकाल कर इसमें एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह खाली पेट पिए या फिर आंवले का चूर्ण बनाकर शहद के साथ ले सकते है।
बेहतर प्रयोग के लिए किसी अच्छे आयुर्वेद चिकित्सक से परामर्श अवस्य ले।
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